Skip to main content

Posts

गेंहू मे सागरिका का उपयोग

 गेहूं 🌾🌾में सागरिका (Seaweed Extract – Sagarika) का सही समय, मात्रा और किस खाद के साथ डालना चाहिए — यह सब नीचे आसान भाषा में समझिए ✅ 1. सागरिका का उपयोग कब करें? गेहूं में सागरिका दो समय पर बहुत अच्छा परिणाम देता है: (A) पहली सिंचाई के बाद (20–25 दिन पर) इस समय डालने से कल्ले (टिलरिंग) बढ़ते हैं, पौधा हरा-भरा रहता है। (B) दूसरी सिंचाई के समय (40–45 दिन पर) इससे पौधे की जड़ें मजबूत, स्पाइक (बालियाँ) मोटी, और अनाज भराव अच्छा होता है। --- ✅ 2. सागरिका कैसे डालें? 👉 (1) मिट्टी में डालना (Soil Application) — सबसे अच्छा तरीका 1 से 2 किलोग्राम/एकड़ (Granules वाला Sagarika) यूरिया या DAP के साथ मिश्रण बनाकर सीधे खेत में डाल सकते हैं। 👉 (2) पत्तियों पर स्प्रे (Foliar Spray) Liquid Sagarika — 2 से 3 मिली/लीटर एक एकड़ के लिए लगभग 250–300 लीटर पानी में 500–700 ml। इससे पौधा जल्दी प्रतिक्रिया देता है और कल्ले तेजी से निकलते हैं। --- ✅ 3. सागरिका किस खाद के साथ डालें? ⭐ सबसे अच्छा मिश्रण (पहली सिंचाई पर) खाद मात्रा यूरिया 20–25 किलो DAP या 12:32:16 10–15 किलो (यदि नहीं डाला पहले से) सागरिका...
Recent posts

गेहूँ के कल्ले बढ़ाने का फार्मूला

 गेहूं में पीलापन खत्म करने और कल्ले (टिलर) बढ़ाने के लिए पहली बार खाद डालते समय सही मिश्रण बहुत ज़रूरी है। नीचे बिल्कुल स्पष्ट, सरल और सही मात्रा बताई गई है: ✅ पहली बार (पहली सिंचाई के समय) कौन सा खाद डालें और कितनी मात्रा में ⭐ 1. यूरिया – 35 से 45 किलो प्रति बीघा गेहूं में नाइट्रोजन की कमी से पीलापन आता है। यूरिया देने से पौधा हरा-भरा होता है और कल्ले बढ़ते हैं। --- ⭐ 2. जिंक सल्फेट (ZnSO₄) – 4 से 5 किलो प्रति बीघा पीलापन और रुकावट का सबसे बड़ा कारण जिंक की कमी होती है। जिंक डालने से पत्तियां हरी होती हैं और पौधे की वृद्धि तेज होती है। अगर दाना पतला है और पत्ती का सिरा पीला है तो जिंक की कमी पक्की है। --- ⭐ 3. सागरिका / सीवीड लिक्विड – 1 लीटर प्रति बीघा (सिंचाई के साथ) यह जड़ें तेजी से बढ़ाता है। कल्ले बढ़ाने में बहुत असरदार होता है। --- ⭐ वैकल्पिक (और अच्छा परिणाम देता है) सल्फर 90% (बेंटोनाइट सल्फर) – 3 से 4 किलो प्रति बीघा सल्फर से पीलापन कम होता है। दाने मोटे होते हैं और कल्ले बढ़ते हैं। --- 🔸 पूरा मिश्रण (पहली सिंचाई पर – प्रति बीघा) ✔ यूरिया – 35–45 किलो ✔ जिंक सल्फेट – 4...

भिंडी की खेती

 अगेती भिंडी की खेती से भयंकर मुनाफा 👉 खेती का सही समय अगेती भिंडी की बुवाई फरवरी के आखिरी सप्ताह से अप्रैल के पहले सप्ताह तक की जाती है। यदि आप गर्म इलाकों में हैं, तो इसकी बुवाई जनवरी के अंत से ही शुरू कर सकते हैं। भिंडी के अच्छे अंकुरण के लिए तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस होना जरूरी है। 🌱 खेत की तैयारी खेत को अच्छी तरह जुताई कर भुरभुरा बनाएं। अंतिम जुताई में 8–10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ मिलाएं। मेड़-नाली यानी रिज एंड फर्रो विधि भिंडी के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है। 🌾 बुवाई की विधि मेड़ों की दूरी: 45–60 सेंटीमीटर पौधे की दूरी: 25–30 सेंटीमीटर बीज की गहराई: 2–3 सेंटीमीटर बीज मात्रा: 4–5 किलो प्रति एकड़ मेड़-नाली विधि में जल निकास अच्छा रहता है और पैदावार भी ज्यादा मिलती है। 💧 सिंचाई प्रबंधन बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। गर्मी के दिनों में हर 5–6 दिन पर पानी दें। फूल आने के समय पानी की कमी बिल्कुल न होने दें—इससे फल सेटिंग बढ़ती है। 🍃 खाद और उर्वरक बुवाई के समय दें: NPK 10:26:26 → 40–50 किलो प्रति एकड़ गोबर खाद 8–10 टन 25–30 दिन बाद 30–35 किलो यूरिया टॉप ड्रेसिंग ...

Chilli Farming

  हमारे देश में शिमला मिर्च को सब्जी, लाल - हरी मोटी मिर्च को अचार, हरी मिर्च को सलाद - सब्जी और सूखी लाल मिर्च को मसालों के रूप इस्तेमाल किया जाता है। मिर्च की खेती को मसाला फसल के रूप में किया जाता है | मिर्च को ताज़ा - सूखा एवं पाउडर तीनो ही रूपों में इस्तेमाल किया जाता है। सभी प्रकार की सब्जियों में मिर्च का बहुत अधिक महत्त्व होता है, क्योकि बिना मिर्च कोई भी सब्जी कितनी ही अच्छी तरह से क्यों न बनाई गई वह फीकी ही लगेगी। मिर्च में कैप्सेइसिन रसायन पाया जाता है, जो इसके स्वाद को तीखा बनाता है। यह हमारे भोजन में स्वाद का एक अहम हिस्सा होती है। मिर्च में फॉस्फोरस, कैल्सियम, विटामिन ए, सी, के तत्व पाए जाते है, जो स्वास्थ की दृष्टि से भी हमारे शरीर के लिए लाभदायक होते है। वैज्ञानिक रूप से हरी मिर्च की खेती करने पर अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। मिर्च की खेती को किसी भी जलवायु में किया जा सकता है, किन्तु आद्र शुष्क जलवायु को इसकी खेती के लिए उचित माना जाता है। अधिक गर्मी और सर्दी का मौसम इसकी फसल के लिए हानिकारक होता है। इसके अलावा सर्दियों में गिरने वाला पाला भी मिर्च की फसल के ...

पीली सरसों की खेती

  पीली सरसों की खेती करते समय इन बातों का रखें ध्यान पीली सरसों की खेती के लिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए तथा इसके बाद 2-3 जुताइयां देशी हल, कल्टीवेटर/हैरों से करके पाटा देकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए। इसलिए किसान संभव हो तो अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण करा लेना चाहिए ताकि मिट्टी में पोषक तत्व की कमी का पता चल सके जिससे उसमें सुधार किया जा सके। पीली सरसों की बुवाई देशी हल से करना करनी चाहिए। इससे बीज अच्छी तरह मिट्टी में जम जाता है। फूल निकलने से पूर्व की अवस्था में इसकी सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। इससे अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। इसकी खेती के दौरान यदि खरपतवारनाशी रसायन का प्रयोग न किया गया हो तो खुरपी से निराई कर खरपतवारों का नियंत्रण करना चाहिए। 

Yellow Mustard Farming

  पीली सरसों की खेती करते समय इन बातों का रखें ध्यान पीली सरसों की खेती के लिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए तथा इसके बाद 2-3 जुताइयां देशी हल, कल्टीवेटर/हैरों से करके पाटा देकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए। इसलिए किसान संभव हो तो अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण करा लेना चाहिए ताकि मिट्टी में पोषक तत्व की कमी का पता चल सके जिससे उसमें सुधार किया जा सके। पीली सरसों की बुवाई देशी हल से करना करनी चाहिए। इससे बीज अच्छी तरह मिट्टी में जम जाता है। फूल निकलने से पूर्व की अवस्था में इसकी सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। इससे अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। इसकी खेती के दौरान यदि खरपतवारनाशी रसायन का प्रयोग न किया गया हो तो खुरपी से निराई कर खरपतवारों का नियंत्रण करना चाहिए। 

सरसों की खेती

#अलवर_का_प्रसिद्ध_सरसों_बीज  सरसों की खेती (Mustard farming) मुख्य रूप से भारत के सभी क्षेत्रों पर की जाती है। सरसों की खेती (Mustard farming) हरियाणा, राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, उत्‍तर प्रदेश बिहार महाराष्‍ट्र की एक प्रमुख फसल है। यह प्रमुख तिलहन फसल है। सरसों की खेती (Mustard farming) खास बात है की यह सिंचित और बारानी, दोनों ही अवस्‍थाओं में उगाई जा सकती है। सरसों की खेती से अच्छी पैदवार के लिए बारानी क्षेत्रों में सरसों की बुवाई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तथा सिचिंत क्षेत्रों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए।